सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन हैचिर हरण करता प्रसाशन है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

परिवार मागें न्याय, तो ”चिन्मयानंद” को बचता प्रसाशन है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

चिर हरण करता प्रसाशन है

जनता मागें जबाब, तो कहते है यही तो सुशासन है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

चिर हरण करता बेटी के लाज को, ”सेंगर”’ को बचता प्रसाशन है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

पेपर लीक होता बार-बार,फिर भी रिजल्ट जारी करता प्रसाशन है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

युवा मागें रोजगार तो, कहते है की पता नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

सहारनपुर में दलितों का घर जलाया जाता है

दुर्योधन के जातियों को, यहीं बचाता प्रसाशन है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

ऑक्सीज़न की कमी नही थी, ये कहता दुर्योधन का सशासन है

गंगा पट गयी लाशों से, यही तो स्वच्छ गंगा अभियान है

गंगा घाट के शमसान को, बना दिया कब्रिस्तान है

वाह रे दुर्योधन तेरा सशासन, तूने माँ गंगा का भी कर दिया अपमान है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

किसान मागें न्याय तो, ”टेनी” को बचता प्रशासन है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है 

लूट खसोट का सशासन है,

सिर्फ हाईवे के विकास पे चलता ये प्रसशासन है

सुशासन नहीं, ये दुर्योधन का सशासन है

अच्छे दिन के ये सब आसन है, यहीं सब तो सुशासन है,

धूर्त क्रीड़ा खेल रहे है , ये राजा संत मुरारी है !

چالبازی کھیلتے ہوئے یہ بادشاہ سنت مراری ہے۔

धूर्त क्रीड़ा खेल रहे है , ये राजा संत मुरारी है !

पासा डाले गंगा में , लासे बहती बहुत सारी है !!

बैठ पांडव शासन में , लालक्षण कौरवो पे डाली है !

जब उठे सवाल जनमानस से , तो उत्तर बड़े न्यारे है !!

मुँह में गंगा क्या डालोगे , हमने लासे गंगा में डाली है !

अस्थियां गंगा में क्या डालो गे , हमने पूरी लॉस ही गंगा में डाली है !!

धूर्त क्रीड़ा खेल रहे है , ये राजा संत मुरारी है !

गंगा में दूध डालते , लसो की क्यारी है !!

जब ऐसी शासन हो तो , उगती लसो की फुलवारी है !

जनता जब बन जाये भक्त , तो जनता की दुश्वारी है !!

जनमानस के इस वीकट समय में , तय नेहरू की जिम्मेदारी हो !

धूर्त क्रीड़ा खेल रहे है , ये राजा संत मुरारी है !!

स्वस्थ केंद्रों में डॉक्टूर नही , पोर्टल की तैयारी है !

स्वस्थ केंद्रों में जन सुविधा नहीं , एप की व्ययस्था न्यारी है !!

ऑफलाइन से इलाज नहीं हो पता , ऑनलाइन से हल होगी सारी बीमारी है !

ऑनलाइन से इम्पोर्ट हो रही लासे गंगा में , ये कहता कागज सरकारी है !!

धूर्त क्रीड़ा खेल रहे है , ये राजा संत मुरारी है !

गंगा किनारे , जो लाशों की क्यारी है !!

मानों संत बैंठे हो , 21 जून की तयारी हो !!!  

kisan se adavat/किसानो से अदावत/

کسانوں سے جھگڑا

किसानो की अदावत को अब हल्का मत समझ !

वो हल का  हाथ है, उसे हल्का मत समझ !

तू मगरूर है , अपने वक़्ते-ऐ-इंतज़ाम पे !

इस वक़्त पे इतना एतबार मत कर !

कितने शूरमा आये , इस ज़रखेज़ ज़मी पे !

मगर सदा के लिए , इस ज़मी पे कोई आबाद हुआ !

वीरान किलो को देख , दौलत और ताकत की दुहाही देते है !

इंसानियत की दरख्त पे, काटो की फली मत लगा !ये चुभेंगे तुझे भी , एहसासे कम-तरी से इसे मत छुपा ! 

kisan ki awaz/

کسان کی آواز

kisan ki awaz/

کسان کی آواز
kisan ki awaz/کسان کی آواز

दिफ़ा कितनी थी , आलम कितने थे !

दिल्ली दूर थी , लेकिन हम निकल पड़े थे !

क्यूंकि सरकारें दिल्ली में है , हम नुक्सान बताने निकले है !

MSP की मांग हमारी, हम संविधान बचाने निकले है !

दिफ़ा कितनी थी , आलम कितने थे !

दिल्ली दूर थी , लेकिन हम निकल पड़े थे !

क्यूंकि सरकारें दिल्ली में है , हम बाजार बचाने निकले है !

खेत-खलिहान हमारी , हम अपने बच्चों का स्वाभीमान बचाने निकले है !!

दिफ़ा कितनी थी , आलम कितने थे !

दिल्ली दूर थी , लेकिन हम निकल पड़े थे !

क्यूंकि सरकारें दिल्ली में है , हम सोई सरकार जगाने निकले है !

हिन्द की मिटटी हमारी है , हम सड़कों पे हल चलाने निकले है !!!

दिफ़ा कितनी थी , आलम कितने थे !

दिल्ली दूर थी , लेकिन हम निकल पड़े थे !

क्यूंकि सरकारें दिल्ली में है , हम तानाशाह सरकार को ये बताने निकले है !

हिन्द में जमूरियत है , सरकारें जनता होती है , हम ये समझाने निकले है !!!!

दिफ़ा कितनी थी , आलम कितने थे !

दिल्ली दूर थी , लेकिन हम निकल पड़े थे !

क्यूंकि सरकारें दिल्ली में है , हम चैत्य भूमि की हरियाली बचाने निकले है !

हम मौर्य है , यवन  मलेच्छों से हम सिंध भूमि ( हिन्द भूमि ) बचाने निकले है !!!!

किसान का हल, किसान की मुठी;کسان کا ہل چلا کسان کی مٹھی
किसान का हल, किसान की मुठी;
मत छीनो साहब हमसे हमारी,आधी रोटी;
किसान का हल, किसान की मुठी;
बाजरे की बाली,गेहू की जूठी;
न चाहिए हमे भर पेट साहब,हमें खाने दो रूखी-सुखी;
किसान का हल, किसान की मुठी;
सरसो दी साग,मक्के दी रोटी;
हमे न चाहिए साहब,गोस्त-रोटी;
किसान का हल, किसान की मुठी;
क्यों बेचना चाहते हो, हमारी पगड़ी-टोपी;
इंडस्ट्रिलिस्ट नोच खाएँगे हमारी -बोटी-बोटी;
किसान का हल, किसान की मुठी;
मत छीनो साहब, हमारी रोज़ी-रोटी;
कैसे जिलायेंगे हम,अपनी बहू-बेटी;
किसान का हल, किसान की मुठी;
मत छीनो साहब, हमसे हमारी फटी-धोती;



Rubrooye-e-Tasbir/रूबरूए-ऐ-तस्बीर/روبرائے ای تسبییر

वो कितने मगरूर हो गए , अपने असके ऐ अंदाज़ से

अब वो मुझे आईना दिखते है अपने रुआब के (1)

अजीब सी सिद्दत है उनके तस्वीर में

जैसे मै उनके पास हु , वो इतने मुत्मइन है (2)

रकब की एक तस्वीर मैंने

मानो वो देख रहा हो मुझे (3)

उनके आँखों वो लू-लू महल जब झुकाते है

सितारे नहीं, वो आफताब लगते है (४)

लू लू = मोती

हर तस्बीर एक हदफ़ दुहाई देते है 

उनकी ये तदवीर, एक पुरानी रौशनी लगती है (5)

अब वो कायम तस्वीरों से करते है

मुकम्मल है उनका ईमान, ये तकबीर करते है (6)

तस्वीरों को देख कर अब लोग इत्मीनान करते है

तस्वीरों को करीब से देख कर, दिल को अनजान करते है(7)

तस्वीरों की उनके वो बेबाक अदा  

जैसे वो कुछ दरखास्त करते है (8)

तस्वीरों को देखने वाले, वो कितने अफरात रखते है

तस्वीरों के हर कशा में वो लगता है, मुझे कितना पास रखते है (9) ���

Jubani jama kharch nahi war chahiye (जुबानी जमा खर्च नहीं वॉर चाहिए ) , زوبانی جمعہ کو پیسہ خرچ نہیں کرنا چاہئے

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जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,زوبانی جمعہ کو پیسہ خرچ نہیں کرنا چاہئے

एक सर के बदले चार चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

पकिस्तान के दुकडए हजार चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

सर्जिकल नहीं अब खुला वॉर चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

बतोले बाज़ नहीं इंदिरा जैसा दम दार चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

इंदिरा ने किये दो दुकड़े तुमसे हजार चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

इरादा नहीं लाहौर तक सेना का यलगार चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

इस साल इलेक्शन नहीं वॉर चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

डिगे नहीं मुल्तान की मिटटी इस बार चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

मीडिया भी बंद करे पाक से खबरों का व्यापर इस बार चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

चौकीदार नहीं ब्रिगेडियर उस्मान चाहिए ,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

अब बंद आयात-निर्यात का व्यापर चाहिए,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

पाक के जर्रे-जर्रे में भारतीय बारूद अब शुमार चाहिए,

जुबानी जमा खर्च नहीं  वॉर चाहिए ,

गिलाफ़ी ऑंखें

साल का आखिरी शाम, अलविदे की शाम थी !
उनसे एक और मुलाकात आखरी मुला कात थी !
बीत गए आधे दशक यूँही बदगुमानी में !
दिल का दर्द अब आँखों की रवानी बन गयी !
गीले हो जाते है गिलाफ़ी आंख आँखों के पानी से !
अभी भी खुली नहीं आंख यूँही बदगुमानी से !
गीले होते है हर शाम गिलाफ़ी ऑंखें आँखों के पानी से !
टूटती नहीं बदगुमांनी अंदाज़-ए-शानी के !
उठाते है तूफान हर शाम दिल की बागवानी से !
उन टूटे तिनको को सम्भाल फिर जीते बदगुमानी में !
अँधेरा होते ही फिर सिहरन भर जाता है मन की रवानी में !
शुबह होते ही फिर मन भर जाता बदगुमांनी से !
बिताते जा रहें है एक एक शाम यूँही बदगुमानी में !
कंही बीत न जाये यूँही शाम बदगुमानी में !
कंही छूट न जाये कोई प्यारा साथी यूँही बदगुमानी में !
आओ लिखते है प्यारी कहानी तोड़ बदगुमानी को !!

 

तेरी शूरत(teri shurt)

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तेरी शूरत

तेरी शूरत तारीफे काबिल थी,
तेरी शूरत के आगे ताज का संगेमरमर भी आहे भरता है,
एक बार दिखा दे ताज को शूरते रंग को ,
तेरा वो भी आशिक़ ना हो जाय तो हम क्या चीज है-1

दिल फिशलता है हर खुबशुरत चहरे को देख कर,
मगर जब तेरी शूरत मन के आँखों से गुजराती तब वो हर चेहरा फीका पड़ जाता है तेरी शूरत के आगे-

तेरी खूबशूरती के आलम का हम कैसे बियाँ करे,
खुदा तेरी हुसन का आशिक़ होगा,
ये मेरा एतबार करे-

बराये मेहरबानी होगी तेरी एक बार शूरत तो दिखा दे,
दर पे ना सही खिड़की पे आ के,
लोग देख ले की इश्क़ अभी भी जिन्दा है,
मंदा है मगर इश्क़ तो जिन्दा है-

जुबान-ए-इश्क़ को आज तरह-तरह से बयां करते है लोग,
इश्क़ बे-जुबा है फिर भी बयां करते है लोग-

इश्क़ में ना जाने कितने मुसलिम हुए,
इश्क़ में ना जाने कितने आलिम हुए,
इश्क़ में जिसने की तवाफ़,
इश्क़ में तो वही मुसलिम हुए-
तवाफ़=परिक्रमा
मुस्लिम= आज्ञाकारी

 

 

शूरत- ए- इजहार (shoorat-e-izahar)

windowशूरत- ए- इजहार (Gazal)

वो खिड़की से देखा करती थी,
मै दर से देखा करता था,

वो बे खौफ देखा करती थी,
मै दर पे बैठे मजलिस को देखा करता था,
वो निगाहों से बुलाया करती थी,
मै नजरो से मना करता था,
वो लाख शिकायत करती थी,
मै लाख-लाख बार मनाया करता था,

वो खिड़की से देखा करती थी,
मै दर से देखा करता था,

वो सारे दिन नजरो से शिकायत करती थी,
मै सारे दिन दिल से सुना करता था,
वो दूर से ही इजहार करती थी,
मै दूर से ही इकरार करता था,

वो खिड़की से देखा कराती थी,
मै दर से देखा करता था,

मै लाख वफ़ाएं भेजा करता था,
वो बार-बार गिला कराती थी,
मै बार-बार मनाया करता था,
वो हर बार मना करती थी,
वो हर पल पलकों पे रहती थी,
वो अब हर पल दिल में रहती है,