शूरत- ए- इजहार (shoorat-e-izahar)

windowशूरत- ए- इजहार (Gazal)

वो खिड़की से देखा करती थी,
मै दर से देखा करता था,

वो बे खौफ देखा करती थी,
मै दर पे बैठे मजलिस को देखा करता था,
वो निगाहों से बुलाया करती थी,
मै नजरो से मना करता था,
वो लाख शिकायत करती थी,
मै लाख-लाख बार मनाया करता था,

वो खिड़की से देखा करती थी,
मै दर से देखा करता था,

वो सारे दिन नजरो से शिकायत करती थी,
मै सारे दिन दिल से सुना करता था,
वो दूर से ही इजहार करती थी,
मै दूर से ही इकरार करता था,

वो खिड़की से देखा कराती थी,
मै दर से देखा करता था,

मै लाख वफ़ाएं भेजा करता था,
वो बार-बार गिला कराती थी,
मै बार-बार मनाया करता था,
वो हर बार मना करती थी,
वो हर पल पलकों पे रहती थी,
वो अब हर पल दिल में रहती है,

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