गिलाफ़ी ऑंखें

साल का आखिरी शाम, अलविदे की शाम थी !
उनसे एक और मुलाकात आखरी मुला कात थी !
बीत गए आधे दशक यूँही बदगुमानी में !
दिल का दर्द अब आँखों की रवानी बन गयी !
गीले हो जाते है गिलाफ़ी आंख आँखों के पानी से !
अभी भी खुली नहीं आंख यूँही बदगुमानी से !
गीले होते है हर शाम गिलाफ़ी ऑंखें आँखों के पानी से !
टूटती नहीं बदगुमांनी अंदाज़-ए-शानी के !
उठाते है तूफान हर शाम दिल की बागवानी से !
उन टूटे तिनको को सम्भाल फिर जीते बदगुमानी में !
अँधेरा होते ही फिर सिहरन भर जाता है मन की रवानी में !
शुबह होते ही फिर मन भर जाता बदगुमांनी से !
बिताते जा रहें है एक एक शाम यूँही बदगुमानी में !
कंही बीत न जाये यूँही शाम बदगुमानी में !
कंही छूट न जाये कोई प्यारा साथी यूँही बदगुमानी में !
आओ लिखते है प्यारी कहानी तोड़ बदगुमानी को !!

 

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