Gustakh AAkhyen

आँखों की खता

उन आँखों की कशिश पे हम यूँहीं एतबार कर गए ,
उनके आँखों की खता हमे बर्बाद कर गए,
हम उन्हें देखते रहे उनके आने के एतबार,
वो खतायें करते मेरे इसी एतबार से ! 1

आँखे झुका के वो बड़ी सिद्दत से मेरे करीब आये ,
पलकों को उठा के आहिस्ता से फरमाए,
हम करते रहे गये जी हजूरी उनके बाते गल का,
उनकी आँखों ने ता-उम्र गुलामी की सजा सुना गए,
हम आज भी उनकी आँखों की खता को एहसास करते है,
दिल को यूँहीं कहते, वो भी हमे याद करते है,
इसे दिल पे एतबार का मरहम लगाना कहते है,
वो हमे याद करे या न करे, हम उन्हें हर साशों में याद करते है 2

आँखों के मर्ज दिल में कब उतरे,
खूबशूरती देखने की आदत थी,
कब गुस्ताखे इशक कर बैठे,
इन दीदारे आँखों को भी पता न चला -३

उन आँखों का क्या जो कभी मुझे ढूढ़ा करते थे,
उस बे-चैन साये का क्या जो कभी आस-पास फिरती थी,
अब मुशाफिर मेरी ऑंखें हो गई उन्हें ढूढते-ढूढते,
ना जाने कहा खो गई वो संगे-मर्मर सी ऑंखें-४

जुबा से जायद ऑंखें बया कर जाती है,
जुबा कहने से पहले सोचता है,
ऑंखें बिना सोचे सब-कुझ बया कर जाती है-५

अब उनकी तस्बीर मेरे खोवाबो की रौनक,
अब उनकी यादें मेरे दिल की रौनक,
उनके आँखों की कसीस मेरे आँखों की रौनक है-६